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Kalpna Yadav

Abstract Tragedy Classics

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Kalpna Yadav

Abstract Tragedy Classics

पथिक

पथिक

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पथिक जो चला जा रहा है

जीवन की राह में अकेला

दुःखों को सीने मेें दबाए

अतीत को कंधे पेे लटकाए


पाँव में टूटे रिश्तों से कंंकड़

चुभते हैं और दिल दुखाएँ

बने हैैं साथी उसकी राह के

वो जो चला जा रहा है 


भारी कदमों से सिर झुकाए 

मिलते हैं मुसाफिर हर कदम पर

पर मिलता नहीं कोई हमसफ़र 

जो चले उसके साथ तब तक

कि जीवन की शाम ढल न जाए।  


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