बाँध
बाँध
एक बाँध सा है कुछ मेरे मन में
जो अब बस टूट जाना चाहता है।
जाने क्या है? कुछ समझ नहीं आता
जो अब किसी तरह छूट जाना चाहता है।
शायद सब्र का कोई सागर है
जो बरसों से है रुका हुआ,
या शायद बेसब्री की लहरों को
अब तक रोक - रोककर थका हुआ
जो अब यूँ ही बह जाना चाहता है।
एक बाँध सा है कुछ मेरे मन में
जो अब बस टूट जाना चाहता है।
लगता है, दुःख की कोई नदी है
जो बरबस यूँ ही बहती चली है
या अब भर कर उफनता हुआ उसका
पानी बाढ़ बन बह जाना चाहता है।
एक बाँध सा है कुछ मेरे मन में
जो अब बस टूट जाना चाहता है।