दुःख
दुःख
लोग घुटते रहते हैं
मगर कहते नहीं
अपने मन की बात
और अपने बुरे हालात
कभी जब दुःख अपनी
सीमा लाँँघ जाए
तब दुःख नीर बन
नयनों से बह जाता है
मन के मेघ बरस
धूप सी मुस्कान
अधरों पर दिखती है
और वो समझते हैं
दुःख का निदान हो गया
पर दुःख कहानी नहीं
जो खत्म हो जाए
मात्र बरस जाने से
दुःख वो कविता है
जो पूरी नहीं होती
जब तक कवि और
उसकी कल्पनाशीलता है
दुःख की घुटन
मिटती है किसी के साथ
इसकी साझेदारी से
प्रेम और समर्पण
से.....
