कमजोर
कमजोर
बस में भीड़ भरी पड़ी थी
मैं भी किसी कोने में लटकी पड़ी थी
तभी एक गर्भवती महिला बस में चढ़ी
पर किसी ने भी सीट खाली न करी
दस मिनट के सफर के बाद
किसी का तो स्टॉप आ गया
वो भी बैठ गयी
संयोग से मेरा भी उसके साथ बैठना हो गया
मैं अजनबियों से बात नहीं करती
पर उसका गुबार शब्दों में निकल रहा था
मैं मजबूर और कमजोर हूँ
फिर भी लोगो को दया नहीं आती
किसी से सीट क्यों नहीं दी जाती
मैंने एक नज़र भरकर उसको देखा
कहा, "कमजोर तो वो पुरुष हैं जिनका पौरुष
औरतो पर हाथ उठाने तक सीमित हैं
इसलिए वो उठ नहीं सकते
यह औरतें जिनकी ज़बान सास-बहू
की बुराई करने से नहीं थकती
मगर जान पैरो में ज़रूर हैं अटकती
तुम तो इस परिस्थिति में
पचास लोगो का सामना कर
इस भरी बस मैं चढ़ी हो
तुम कमजोर नहीं बहादुर बड़ी हो
मेरा गंतव्य आ गया मैं उठने को तैयार थी
उस महिला की आँखों में धन्यवाद
और चेहरे पर मुस्कान थी।।
