समझदार हो गए
समझदार हो गए
इस ज़िंदगी में नाकामयाबी के किस्से बेशुमार हो गए।
धोखा खाया है इतनी बार हमने कि समझदार हो गए।।
अपनों ने ही हर बार विश्वास तोड़ा हर कदम पर छला।
खुशियों से टूटा जब नाता, ग़म हमारे पहरेदार हो गए।।
अजनबियों की तरह गुज़र जाते हैं, बिन मुस्कुराहट के।
अपनों के बीच, अपने घर में ही हम किराएदार हो गए।।
मतलब परस्त हो गए हैं सभी, एहसास न समझे कोई।
अपनापन बचा कहांँ, सब दौलत के तलबगार हो गए।।
था गुरूर अपने नसीब पर, वो भी तो हमें दगा दे गई।
सुना था ग़म बहुत दुनिया में, हम भी हिस्सेदार हो गए।।
गुज़र जाएगी ज़िंदगी गिनते-गिनते, इतना विश्वास टूटा।
गुमान था जिन रिश्तों पर आज वही दरकिनार हो गए।।
जी रहे हमारे बिन ऐसे, जैसे कभी हम थे ही नहीं वहाँ,
मिट गई हो जिसकी पहचान भी, ऐसे किरदार हो गए।।
अभी तो एक लंबा सफ़र बाकी ही है इस ज़िन्दगी का।
और इतने ज़ख्म हमारे व़जूद के यहांँ साझेदार हो गए।।
कहते हैं दूध का जला तो छाछ भी फूंँक कर पीता है।
हमने भी आजमाया इसे जो वाकई असरदार हो गए।।