समझ वही सकता जो समझना चाहता है
समझ वही सकता जो समझना चाहता है
हर जगह बैठे हैं वह अपना बिस्तर लगाए,
बिस्तर पर कौन बैठा यह मत देख बौराय,
बिस्तर पर कौन आ रहा देख आस लगाए,
बिस्तर पर हलाल बैठे कैसे मुर्गा फंसजाए।
यह आल्हा उदल में जैसे माहिल रहे चमकाए,
कौनसी करवट ऊंठ बैठे सियार रहे बिल्काए।
फटो बिछौना वीरन को इतिहास गवाह होई जाए,
थर थर कापैं गद्दार अगर माहिल अंत होई जाए।
रही जगत की हानि जब जब शकुनि वंश चला,
ठौर घरहूआ मरे आपस में आधुनिक युग चला।
तरकश में तीर बावरे खींचन की देरी कब है,
भिंद जाए जगत लहू की धारा मैली कब है।
हम वहीं पहुंचेंगे जहां इतिहास शुरू हुआ है,
जहां वीरों का सीना छलनी कुर्बान हुआ है।
आज स्याही है कल लहू से पन्ना लाल हुआ था,
शकुनि और माहिल वंशों से देश बरबाद हुआ था।
चौपाल लगती नहीं शन्न लगाई जाती है,
बात बनती नहीं चौपाल में बनाई जाती है।
लेकिन आज चौपाल भिन्न विचार छिन्न है,
बात खत्म नहीं और ढंग से बढ़ाई जाती है।
इसलिए कहता हूं रंगत को समझ संगत में,
क्या फ़र्क है बाली सुग्रीव और अंगद में।
समझ वही सकता जो समझना चाहता है,
न समझने वाले के लिए क्या अंकुश है।