सिर्फ़ तुम
सिर्फ़ तुम
तुम्हारे होठों की वो मोहक मुस्कान
यूँ बिखरती है चेहरे पर
ज्यूँ बीती रात कमलशत खिले हों
तुम्हारी सादगी में लिपटा सौंदर्य
यूँ उतरता है हृदय के भीतर
ज्यूँ रवि-चन्द्र मिलें हों
तुम्हारे शब्दों में बहता सरस स्नेह
यूँ बरस जाता है मन के अन्दर
ज्यूँ पीयूष रस तले हो
तुम्हारे भावों की मीठी सरिता
यूँ सरसाती है प्रेम समंदर
ज्यूँ भावना प्रिय पले हो
तुम्हारे साथ की मादक सी खुशबू
यूँ महकती है मित्रत्व पर
ज्यूँ मुस्काती जयमाल गले हो।

