शज़र
शज़र
कल रात गई रात तक...
चलती रही होंगी नफ़रत की आंधियाँ,
भोर होते ही देखा तो...
शजर पर एक ही पत्ता नज़र आता था!
ज़िन्दगी से बढ़कर चाहा जिसे,
वो मौत की आगोश में चला गया ;
तो... अब ज़िंदा रहना भी बेमानी ठहरा,
अब मेरे ज़िस्मो जां में मैं तड़पता नज़र आता था।