Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Kishan Negi

Tragedy Inspirational

4.0  

Kishan Negi

Tragedy Inspirational

रे खुदगर्ज़ इंसान

रे खुदगर्ज़ इंसान

1 min
382


मतलबी इंसान क्या था तू क्या हो गया है

बेमकसद जाने किन उलझनों में खो गया है

रास्तों को भी तेरी मंज़िल का कोई पता नहीं

रात का जागा दिन के उजाले में सो गया है


रिश्तों के कच्चे धागों को क्यों तूने तोड़ दिया

बचपन के यारों को क्यों तूने पीछे छोड़ दिया

रुखसत के बाद सिर्फ़ दो गज ज़मीन चाहिए

अनजान बन ज़िन्दगी से क्यों मुख मोड़ दिया


झंझटों के साये में किधर तू निकल रहा है

अपने इरादों से पल-पल क्यों फिसल रहा है

कितना और धँसेगा तू ग़रूर के दलदल में

कामयाबी की तपिश में ईमान पिघल रहा है


कहीं नरम धूप कहीं मायूसियों के घने बादल

जिंदगी की जद्दोजहद ने कर दिया तुझे घायल

सुकून की डाल पर अब कोयल गीत नहीं गाती

तेरे आँगन में खुशियों की टूटी झनकती पायल


नादाँ इंसान कितना आगे और तुझे है जाना

सांझ ढले पंछी को भी लौट कर घर है आना

क्यों भटक रहा है चुटकी भर सुकून के लिए

पल-पल उलझ रहा है जिंदगी का ताना-बाना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy