मैंने देखा है
मैंने देखा है
घर आते मजदूरों की बेबसी को मैंने देखा है।
कल तक जिसके पास सब कुछ था ..
मानो वह किसी अमीरों से कम न था
करवटें ऐसी बदली जैसे बिन बादल बरस गई
ना कोई कुछ समझ पाया ना कोई कुछ कह पाया
अपनी तकदीर को कोसते हुए
उस बेबस मजदूर को मैंने देखा है
घर से दूर रहकर अपने परिवारों के संग,
खुशी खुशी करता था जीवन व्यतीत ..
घर वापसी को जब वह आया
दूसरे क्या अपने भी हो गए उसके अपरिचित
एक कठिन आपदा आई
उड़ा ले गई सारी हसरतें..
जिन्होंने कल के लिए कुछ सोच रखा था
मिट गई उनकी सारी ख्वाहिशें
परिवार की तंगी और बदहाली
उस बेबस मजदूर को मैंने देखा है
कुछ दिन रह कर उसने आने वाले कल को देखा
इंतजार के लम्हे खत्म हो गई
कर ना पाया कोई इंतजाम
कोई पैदल तो कोई साइकिल ..
तो कोई घर जाने के लिए
रेलवे ट्रैक को बनाया मंजिल
उसने बस यही सोच रखी थी घर पास हो या दूर
जाना है बस जाना है चलते ही जाना है
उस जाते हुए मजदूरों की बेबसी को मैंने देखा है
ना काम मिला किसी को
ना सरकारी फंड का इनाम ..
कितने वादे कर गए थे मंत्रियों ने
इन मंत्रियों को बहुत-बहुत सलाम
लंबी अवधि की लॉक डाउन में
कर दिया बेचारे को बेहाल..
जो पैसे बचा कर रखे थे
घर आए मजदूरों की हो गया बुरा हाल
इन बेबस मजदूरों की बेबसी को मैंने देखा है।
