माँ की ममता अनमोल
माँ की ममता अनमोल


*मां की ममता बोली*
ममत्व वात्सल्य स्नेह उपकार चाहती हैं
थोड़ी हमदर्दी और थोड़ा प्यार चाहती हैं
चांद तारे नज़ारे न वो कोहसार चाहती हैं
चहुंमुखी जीवन का बस विस्तार चाहती हैं
मंतव्य उनका ये नहीं के कुल कब्जा रहे
हां मगर अपने सपनों को साकार चाहती हैं
जुबान-ओ-दिल-ज़हन घर-आंगन महके
फूलों के नहीं बाहों के वो हार चाहती हैं
सहन में दीवार की है कहां हसरत उनको
वो रक्षा कवच इक संयुक्त परिवार चाहती हैं
झूठी ही सही तसल्ली मगर दे हमसफ़र
थोड़ा गुस्सैल बेशक जां-निसार चाहती हैं
गूंज उठेंगे खामोश वीराने भी देखते देखते
किलकारियों से भरा-पूरा संसार चाहती हैं
अदावत एक बार के लिए भी नहीं किसी से
हां मगर निस्वार्थ दोस्ती हर बार चाहती हैं
अहले-ज़र जमीं की नहीं ख्वाहिश उनको
तमन्नाएं हर सूरत तेरा ही दीदार चाहती हैं।