पटाक्षेप
पटाक्षेप
जनतंत्र
जब अपनी सीमा का अतिक्रमण करने लगा
उसे, मुर्गे की तरह पकड़
दडबे में बन्द कर दिया गया.
सुबह हुई या नहीं
बांग दी या नहीं
मगर सूरज उगाया गया
यहाँ तक कि उछाला गया
लोग छतों पर चढकर
छूने की कोशिश करने लगे
हर बार, हाथ में आते-आते निकल गया सूरज
और, एक अर्से बाद
सूरज फिर अपनी जगह चला गया
और, मुस्कराने लगा
तब तक कई मुर्गों की घांटी दाब दी गई
कई मुर्गे बांग लगाने का काम बकायदा करने लगे
जनसागर/ फिर देखता रहा
उदास सुबह और ध्रुवी रातें.
जनतंत्र आश्वस्त था कि नाटक सफल रहा
किन्तु जन-जन ने
आरम्भ के कुछ देर बाद ही
कर दिया पटाक्षेप !
