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सुरभि शर्मा

Abstract Tragedy

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सुरभि शर्मा

Abstract Tragedy

अनचाहा सफर

अनचाहा सफर

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पग - पग चौकस नजरों के बीच पली

लड़की होने के नाम पर, 

अपनी इच्छाओं का गला घोंटती, 

जिन्हें सिखाया जाता है 

हर बात पर चुप रहना, 

संस्कार की प्रतिमा 

त्याग की मूर्ति, 

सहनशीलता की पराकाष्ठा हो तुम, 

पूरी सृष्टि तुम पर टिकी है

तुमसे ही जीवन है 

इसलिए अपना हर अपमान 

सबके पोषण के लिए चुपचाप सहना।


सुनो न, हमने भी तो 

तुम पर उपकार किया है 

बराबरी का हक तो दिया है, 

लड़कों की तरह 

आर्थिक आत्मनिर्भर बनने का 

तो कमाना, बाटना 

पर सुनो तुम लड़की हो, 

इसलिए अधिकार कभी मत जताना, 

अपना अस्तित्व कभी किसी को मत बताना 

सिल- बट्टे पे पीसी चटनी की तरह 

"मध्यमवर्गीय शहर " की लड़कियों को 

ये पाठ पढ़ाया जाता है, 


चूंकि विकसित होने की होड़ में 

इस मध्यमवर्गीय शहर में 

सीमित साधन में उजाले के लिए 

असीमित खिड़कियाँ खोल दी जाती हैं, 

इसलिए यहाँ इन्हें विदा करने के पहले 

इनके लिए द्वार खोलने की जरूरत कभी 

समझी नहीं जाती 

और चक्की के पाटों के बीच 

यूँ ही पीस जाती है ये मध्यमवर्गीय 

शहर की लड़कियाँ, 


सब कुछ सीखा देता है 

ये मध्यमवर्गीय शहर 

और इसकी परवरिश लड़कियों को 

बस कुछ नहीं सीखा पाता तो 

रिश्तों की तोड़ फोड़ में 

अपने फायदे का जोड़ 

इस जीवन की व्यवहारिकता 

और इसकी पारदर्शिता, 

और बस इसी समझने - समझाने के फेर में 

अचानक ही संस्कारी से बदतमीज 

तक का सफर तय कर जाती हैं 

ये मध्यमवर्गीय शहर की लड़कियाँ।



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