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शुक्रिया

शुक्रिया

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जिंदगी बेरंग सी थी

इनमें ख़ुशियों के रंग

भरने के लिए, "शुक्रिया" ।


न था अपना कोई यहाँ

इस संसार की भीड़ में

अपना कहने के लिए,"शुक्रिया" ।


भूल चुके थे खुद को

खुद से खुद को

परिचय कराने के लिए,"शुक्रिया" ।


टूट से गये थे अकेले

इस अकेलेपन में

साथ देने के लिए,"शुक्रिया"।


नफरत थी सारे जहाँ से

इस खाली दिल में प्यार का बीज

बोने के लिए,"शुक्रिया"।


कहीं खो गई थी मुस्कान मेरी

हर सुबह मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट

लाने के लिए,''शुक्रिया'' ।


अब तो छोड़ चुके थे जीने की आस

इस नरक सी जिंदगी को जिंदगी

बनाने के लिए,"शुक्रिया"।


जिंदगी बेरंग सी थी

इनमें ख़ुशियों के रंग

भरने के लिए,"शुक्रिया"।


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