अनकी आलू की होशियारी
अनकी आलू की होशियारी
एक गुफा के अंदर रहती थी आलू की टोली।
शरारते मस्ती होती रहती।
एक दिन बारिश जोरों से बरसीं।
जमीन पर चारों तरफ पानी ही पानी ।
अब गुफा थी डूबने वाली
होती थोड़ी और पानी।
आलू का सरदार डर गया
उपाय के लिए बैठक बुलाया।
सबने अपने अपने विचार रखें
जल्द ही यहाँ से कही और चलें।
पर जाए तो जाए कैसे?
चारों तरफ पानी है पसरे।
सबकी आशा डूब गई
चेहरे से मुस्कुराहट छूट गई।
आलू की टोली में था एक आलू
जिसे प्यार से सब कहते, "अनकी आलू"।
चतुर बुद्धि का था वो
अब सबकी आस था वो।
उसने अपना दिमाग चलाया
एक उपाय है, सबको बतलाया।
इस गुफा के ऊपर है दूसरी गुफा
वहाँ गया था मैं एक दफा ।
जाने के रास्ते में है फिसलन
कुछ
सोचना पड़ेगा फौरन ।
कुछ सोचो जल्दी से
वरना गुफा भर जाएगा पानी से ।
हाँ, एक युक्ति है मेरे पास
लेकिन इसमें देना होगा साथ।
एक दूसरे से रस्सी सहारे बंध जाएंगे
बन रेलगाड़ी जैसा ऊपर चढ़ जाएंगे।
सब खुश हो कर ताली बजाएं
एक दूसरे से बंधने के लिए रस्सी जुटाएं ।
जैसा सिखाया अनकी ने
ठीक वैसा ही किया सबने ।
तैयार हो गई आलू की रेलगाड़ी
दूसरी गुफा की ओर धीरे धीरे चल पड़ी ।
एक फिसलता तो दूसरा संभालता
दूसरा फिसलता तो तीसरा संभालता।
हर मुश्किलों का सामना करते-करते
आलू की टोली पहुंच गई चढ़ते-चढ़ते।
अब सबकी जान में जान आई
इसके लिए अनकी को सबने दी बधाई ।
अनकी बोला, "एकता में है बल"
इसी से निकलता है मुश्किलों का हल ।