STORYMIRROR

शतरंज

शतरंज

1 min
130


मेरी लाचारी और तुम्हारी बेवफ़ाई

खत्म सी लगती है अब तो

ये सरफ़रोशी रिश्ते की बुनाई

जो कभी सुनी थी कहानियों में

आज खेल भी कुछ ऐसे दिख रहे

जीवन के अनेक पहलू के तरानों में

क्या थी आज़माइश तुझे मेरे दिल से


पहेलियाँ बुझाते रहे अपने बेहिसाब से

मुझे क्यूँ पल भर में रुसवाई दिखाई तुमने

आख़िर क्यूँ मेरी खामोशी नहीं समझी तुमने


चलो ठीक! तुम जाओ हबीब संग अपने

इतना तो बताते जाओ जाते जाते मुझे

आके करीब क्यूँ की मेरी जग हँसाई तुमने

तुमसे मेरा कोई नाता ना रहना कोई मेल

फिर क्यूँ इश्क़ को बना दिया शतरंज का खेल

ना जोड़ते नाता कभी तुम कोई फर्क नहीं पड़ता

ये तिश्नगी की आग इस दिल में क्यूँ लगाई तुमने।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance