शृंगार रस
शृंगार रस
तरुवर की छाँह तले मेरी गोद में सर रख सो जाओ सनम,
मेरी आँखों में डूबकर मुझे घूँट-घूँट पिओ...
अपने लबों पर शबनम की नमी महसूस करते
अपनी जीभ को मेरे जिस्म से बहती सुगंधित हाला का स्वाद दो..
मेरी चाहत में नहाते नखशिख मुझे प्रतित करो
अपनी हर इन्द्रियों में भाव जगाओ मुझे पाने का..
अपनी नासिका में मेरी कस्तूरी सी महकती साँसों की सरगम भरते
अपने गले से मुझे टपकता हुआ बोध करो,
आँखें मूँदे उस कामुक अनुभूति में बहते मेरी आगोश में मोम की भाँति
पिघल जाओ मैं समूचा तुम्हें अपनी रूह में उतार लूँगी..
मेरे प्रति अपने मोह को उन्मुक्त करते मेरी कामना करो,
मेरी नाभि के इर्द-गिर्द अपनी उँगलियों से प्रेम लिखो..
मैं गुलदस्ता हूँ प्रीत का मेरे होंठों की पंखुड़ियाँ तलबगार है,
अपने लबों से पंखुड़ी उठाकर देखो..
मेरी पलकों पर अपनी पलकें रख दो और एक वादा महसूस करो
'मैं ताउम्र तुम्हारी हूँ' ये लबों से कहना जरूरी है क्या?

