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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत-२६६; देवर्षि नारद का भगवान की दिनचर्या देखना

श्रीमद्भागवत-२६६; देवर्षि नारद का भगवान की दिनचर्या देखना

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श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

नारद जी ने जब ये सुना कि

भोमासुर को मारकर कृष्ण ने

विवाह किया उन राजकुमारियों से।


तब उनके मन में अभिलाषा हुई

रहन सहन देखूँ भगवान का

सोचें कितने आश्चर्य की बात है

कृष्ण ने सबका पाणिग्रहण किया।


एक ही शरीर में एक ही समय

अलग अलग सोलह हज़ार महलों में

पाणिग्रहण किया उन सब

सोलह हज़ार रानियों का उन्होंने।


इस उत्सुकता से प्रेरित होकर

भगवान की लीला देखने के लिए

देवर्षि नारद तुरंत ही

द्वारका नगरी में पहुँच गए।


द्वारका नगरी में ही कृष्ण का

अन्तपुर था, सुंदर बहुत ही

विश्वकर्मा ने उसे बनाया

और उस रनिवास में ही।


सोलह हज़ार से अधिक महल थे

भगवान की रानियों के उसमें

उनमें से एक बड़े महल में

प्रवेश किया था नारद जी ने।


देवर्षि नारद ने  देखा कि

रुक्मिणी के संग कृष्ण बैठे हुए

और रुक्मिणी जी भगवान को

चँवर झुला रहीं अपने हाथों से।


नारद जी को देखते ही

कृष्ण पलंग से उठ खड़े हुए

उनको आसन पर बैठाया

चरणों में प्रणाम किया उनके।


भगवान परमभक्तवत्सल और

भक्तों के परम आदर्श, स्वामी हैं

एक असाधारण नाम उनका है

ब्रह्मणदेव भी उन्हें कहते हैं।


आराध्यदेव हैं मानते

ब्राह्मणों को ही वो अपना

तभी तो पाँव पखारे नारद के

चरणामृत अपने सिर पर धारण किया।


नारद जी की पूजा की और कहा

‘ ज्ञान, वैराग्य, धर्म, यश, ऐश्वर्य से

प्रभो पूर्ण स्वयं आप हो

हम आपकी क्या सेवा करें ‘।


देवर्षि नारद कहें,’ भगवन

स्वामी आप समस्त लोकों के

दर्शन हुआ आपके चरणकमलों का

बड़े सौभाग्य की बात ये।


ऐसी आप कृपा कीजिए

इनकी स्मृति सदा बनी रहे

और मैं चाहे जैसे रहूँ

तन्मय रहूँ इनके ध्यान में ‘।


परीक्षित, देवर्षि नारद ने

योग माया का रहस्य जानने के लिए

वहाँ से प्रस्थान किया और

दूसरी पत्नी के महल में गए।


तब उन्होंने देखा, श्री कृष्ण

उद्धव और अपनी पत्नी के साथ में

वहाँ भी चोसर खेल रहे

उन्हें देख उठ खड़े हो गए।


स्वागत किया, पूजा अर्चा की

अनजान की तरह पूछा नारद से

‘आप यहाँ पर कब पधारे

हम आपकी क्या सेवा करें ‘।


यह सब सुन, देख नारद जी

चकित और विस्मित हो रहे

वहाँ से उठकर चुपचाप वो

दूसरे महल में चले गए।


उस महल में भी उन्होंने देखा

भगवान दुलार रहे बच्चों को अपने

स्नान की तैयारी कर रहे कृष्ण

नारद जब एक और महल में गए।


विभिन्न महलों में भिन्न भिन्न

कार्य करते देखकर कृष्ण को

कहीं देवता की आराधना करें और

हवन करें यज्ञ आदि में कहीं वो।


कहीं ब्राह्मणों को भोजन करा रहे

कहीं भोजन कर रहे स्वयं ही

कहीं विचरण कर रहे हैं

पलंग पर सो रहे कहीं।


कहीं बलराम के साथ बैठे हैं

प्रजा के हित में विचार कर रहे

कहीं उचित समय आने पर

पुत्र, कन्या का विवाह कर रहे।


मनुष्य की सी लीला करते हुए

देखकर कृष्ण को वहाँ पे

योग माया का वैभव उनका

देख उनसे ऐसा कहने लगे।


‘ योगेश्वर, योग माया आपकी

अगम्य है ब्रह्मदि के लिए भी

परंतु हम जानते इसको क्योंकि

सेवा करें आपके चरणकमलों की।


ऐसा करने से स्वयं ही

प्रकट हो ये हमारे सामने

चोदह भुवन आपके सुयश से 

परिपूर्ण हैं हो रहे।


अब मुझे आज्ञा दीजिए कि

आपकी त्रिभुवनपावनी लीला का

गान करता हुआ विचरण करूँ

आपका नाम सिमरन करता हुआ।


भगवान श्री कृष्ण ने कहा

‘ नारद जी , मैं इस संसार में

आया हूँ, धर्म का आचरण कर

धर्म की शिक्षा देने के लिए।


परम पुत्र तुम मेरे हो

योग माया देख मोहित मत होना

श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

आचरण कर रहे वो गृहस्थ धर्म का।


यद्यपि वे एक ही थे फिर भी

देवर्षि नारद ने उनका

प्रत्येक पत्नी के महल में

अलग अलग रूप था देखा।


योग माया का ऐश्वर्या देखकर

नारद जी बहुत विस्मित हुए

द्वारका में गृहस्थ की भाँति

कृष्ण आचरण कर रहे थे।


भगवान का स्मरण करते हुए

नारद जी चले गए वहाँ से

महाशक्ति योग माया से अपनी

भगवान ये लीला कर रहे थे।


रानियाँ उनकी सेवा करती हैं

उनके साथ विहार करें वो

कोई दूसरा नहीं कर सकता

भगवान कृष्ण ने किया जो।


विश्व की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय के

वे ही प्रेम कारण हैं

लीलाओं का श्रवण करने से उनकी

चरणों में उनके भक्ति मिलती है।



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