शिकवा नहीं
शिकवा नहीं


शिकवा नहीं तुझसे कोई ना तुझसे कोई शिकायत है,
चोट खाना बन चुका अब इस दिल की आदत है
ग़लती नही तेरी कोई इस दिल की ही ये आफ़त है,
की मयखाने में ढूंढता फिरता अक्सर ये इबादत है
शीशे की धड़कन रखकर ये औरो से करता बगावत है,
आए दिन आते रहते इस दिल पर कई कयामत है
फ़िर भी कहता नहीं कुछ कमबख्त की यही शराफ़त है,
शिकवा नहीं तुझसे कोई ना तुझसे कोई शिकायत है
चोट खाना बन चुका अब इस दिल की आदत है,
शिकवा नहीं तुझसे कोई ना तुझसे कोई शिकायत है।