STORYMIRROR

Chandra prabha Kumar

Fantasy

4  

Chandra prabha Kumar

Fantasy

शीतल छांव

शीतल छांव

1 min
175

शीतल छांव

वेत्रवति की

शीतल छाँह तले,

छाया सुखकर

मंद समीर बहे। 


सूर्यातप का

वहॉं न बँधता चंदोवा। 

मन धीरे धीरे बहता जाए,

यादों में घुलता जाए। 


स्वप्नों की स्वर्णिम पाँखें

मन झूमा झूमा जाए,

अपने को भूला जाए। 

धीरे धीरे बहता जाए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy