एकान्त कक्ष
एकान्त कक्ष
मैं अपने एकान्त कक्ष में बैठी
परदे गिरे हुए हैं,
बाहर झॉंक रही हूँ,
बदली है, मौन है।
एक दो चिड़ियों की चहचहाहट,
शान्त वातावरण,
ठहरी हवा,
आसमान में सूरज नहीं।
सब जगह एक सा
सुरमई रंग फैला है,
लगता है सब कुछ रुक गया है,
ज़िन्दगी थम गई है।
पल भर ठहरो ज़रा
थोड़ा तो सोचो ज़रा
कहॉं जा रहे हो तुम
क्या कर रहे हो तुम।
क्यूँ आये थे यहॉं तुम
क्या करना था और
कर क्या अब रहे हो,
समय क्यों खो रहे हो।