नारी:एक परिभाषा
नारी:एक परिभाषा
अपनत्त्व का आधार बनती, बनती शक्ति की परिभाषा।
मातृत्त्व का अहसास बनती, बनती जीवन की अभिलाषा।
परिवार का सम्मान बनती, बनती प्यार की अनोखी भाषा।
विश्व पटल पर भगवान का रूप बनती, बनती जगत की आशा।
नीले गगन में स्वच्छंद उड़ने का संकल्प बनती,
बनती अथाह सागर में लहरों की दिशा।
प्रकृति का श्रृंगार बनती, बनती सावन के झूलों की गाथा।
त्यागकर अपना सर्वस्व
लड़ रही स्वयं से "अस्तित्त्व" अपना बचाने को।
अनेक हैं रूप इसके, हर रूप की महिमा निराली
स्वयं को भूलती, मर्यादा "समाज की" बचाने को।
हर रूप में बलिदान अपना देती,
बस प्यार और सम्मान "थोड़ा" पाने को।
नारी को नारायणी हम बुलाते, हर मुसीबत में साथ इसका पाते।
परंतु "नारी" को समझ नहीं पाए और
"भ्रूण हत्या" का पाप कर स्वयं को कलंकित करते।
भूल जाते नारी बिन "जग" ये सूना है,
भूल जाते नारी बिन "मंदिर" में भी रोना है,
और भूल जाते नारी बिन "नर" एक माटी का खिलौना है।
मानव को आज समझना होगा,
मानवता को आज बचाना होगा,
और समाज को अब जताना होगा कि,
अधिकार है इसको भी पढ़ने का, आगे बढ़ने का
अधिकार है इसको भी जीवन अपने सलीके से जीने का,
अधिकार है इसको भी स्वाभिमान संरक्षित करने का,
अधिकार है इसको भी अस्तित्त्त्व अपना बचाने का।
