समय हूँ मैं
समय हूँ मैं
आरम्भ मैं अनंत मैं,
ज़िन्दगी का हूँ अंत मैं।
उतार मैं चढ़ाव मैं,
बढ़ता हुआ शैलाब मैं।
आग मैं सिराग मैं,
हिमालय का हूँ भाग मैं।
भुत मैं वर्तमान मैं,
विभिषिका का एहसास मैं।
युद्ध मैं संहार मैं,
कलयुग का संसार मैं।
राम मैं रावण मैं,
भोले का वरदान मैं।
स्वर्ग मैं ज़ुज़दान मैं,
परशुराम का स्वाभिमान मैं।
पवित्र मैं प्रचण्ड मैं,
कुरुक्षेत्र का भूखण्ड मैं।
नेत्र खोलो देखो मुझे,
इस सृष्टि का रचयिता,
समय हूँ मैं।
