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डॉ. Pankajwasinee

Tragedy

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डॉ. Pankajwasinee

Tragedy

शीर्षक

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 हाथों में नहीं कभी खिलौना ! 

आंखों की खोई है मुस्कान !! 

पीठ भरी नीले जख्मों से... 

गाल भरे थप्पड़ के निशान !! 


 हाथों में पड़ी कितनी गाॅंठें ! 

 भोली जिंदगी होती नित हलकान !! 

 थका शरीर पड़ा है निढाल !

 ओढ़ नीले नभ का वितान !! 


 झिड़कियाॅं औ दुख सौ सहे !

 सब सुखों से हैं अनजान !!

 कोमल पाँव नित धूप सहे...

 काया श्रम से हुई बेजान !! 


 नहीं खेलों का सुख जीवन में !

 नहीं शिक्षा का है अभिमान !! 

 बस ठोकर ही है जीवन में !

 दुख अभाव ही बनी पहचान !!


 सुख से निहाल हों माॅं -बाप !

 चूमे नहीं मुख गात सबके समान ! !

 बस विवश भेजते उस दुनिया में

निजी लाल, जहाॅं न प्यार सम्मान !! 


 किया नहीं किल्लोल कभी !

कि हों माॅं -बाप बलिहारी सुजान ! 

 नित्य विपत्तियों से जूझते हुए–

किलकारियाँ खोईं श्रम के जहान !! 


 करें सब आज दृढ़ संकल्प ये:

भोली जिंदगी न हो यूँ निष्प्राण !! 

देंगे इन्हें देखभाल की संजीवनी ! 

बनाएंँगे इनका बचपन प्राणवान !!


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