शीला की दास्तां
शीला की दास्तां
शीला बाई चार घरों में
काम करती है
बर्तन, झाड़ू, पोंछा।
मुंह अंधेरे उठकर
अपने घर के कामों से निपट
बच्चों को स्कूल भेज
पहुंच जाती है
पहले घर
अपनी ड्यूटी पर
सुबह आठ बजे।
मालकिन अच्छी है
कुछ खाने पीने को भी
परोस देती है।
और साथ मिल
काम भी करवा देती है
अधिक किच् किच् नहीं करती
दो घंटे का काम कर
शीला फ्री हो जाती है।
लगभग दस बजे, दूसरा घर।
मालकिन एकदम
तेज स्वभाव।
रिटायर्ड सरकारी स्कूल टीचर।
हर काम रोब से
करवाने की आदत
डांट डपट करने से भी गुरेज नहीं।
पैसे देने में कंजूसी
खाने पीने को बासी भी नहीं।
कब की हट गई होती
अगर शीला को
एक लालच न होता
मैम ने वायदा किया था
उसके बेटे को कहीं
नौकरी दिलवा देगी।
तीसरा घर इतना बड़ा
सफाई करते-करते कमर
दुहरी हो जाती है।
मालकिन को
सफाई एकदम
चकाचक चाहिए, बस।
पैसे काफी ज़्यादा मिलते हैं
सो शीला ने जैसे तैसे
घसीट रखा है।
चौथे घर का मालिक
एक जवान लड़का
कहीं नौकरी करता है
प्राय: घर पर नहीं होता
चाबी पड़ोस से लेती है शीला
कभी कभी तीज त्यौहार पर
उसके लिए गिफ्ट ले आता है
कहता है
वह उसकी बहन की तरह
दिखती है।
बहुत पहले एक घर में
काम करती थी शीला
मालिक ललचाई निगाह से ही
उसका पीछा करता रहता था।
घर पहुंचते पहुंचते उसे
शाम हो जाती है।
अब बारी आती है
अपने घर के काम की
चलो वह भी हो जाता है।
असली दिक्कत तब होती है
जब उसका घरवाला दारू
पीकर घर लौटता है और----
आप समझ सकते हैं।
शीला सोचती है
कितनी तरह के
लोगों से उसे
समायोजित करना पड़ता है प्रतिदिन
आजीविका कमाने के लिए
घर परिवार चलाए रखने के लिए।
मैं सोचती हूं
शीला का जीवन
कितना चुनौती पूर्ण
नित नया मोर्चा।