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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

सच्ची दौलत

सच्ची दौलत

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दौलत के हो रहे, सब लोग गुलाम

सादगी का भूल रहे, सब लोग नाम

तोड़ रहे, वो रिश्ते सब आज तमाम

जहां बनाया हुआ गरीब ने मकान

दौलत का कुछ यूं हुआ, अभिमान

मिटा रहे है, वो इंसानियत पहचान

दौलत का नशा करता है, बदनाम

दौलत को समझ बैठे, कुछ भगवान

अमीरों की चापलूसी करते, वे इंसान

जो दौलत के खातिर बेच रहे, ईमान

पर साखी वो जिंदा नही है, श्रीमान

जिनका जिंदा नही है, स्वाभिमान

जो गरीबी का रखते, यहां निशान

उन्हें, दुत्कार रहे, सब अमीर इंसान

कहते अमीर जमाना है, बड़ा खराब

मत पी तू ए गरीब, दीन, यह शराब

पर मन के गरीब है, अमीर इंसान

कहता, वो मन का हूं, में धनवान

गर यकीं न हो तुझे अमीर इंसान

कभी आना मुझ गरीब के मकान

तेरी सेवा में, लूटा देंगे चीजें तमाम

तेरे मुंह से भी निकल पड़ेगा, वाह

क्या ख़ूब है, तू भी हे गरीब इंसान

हम लोग तो सब में व्यावसायिक है

तोड़ देते है, हर रिश्ता इक-इक है

हम पैसे को मानते है, भगवान

तू मानवता को मानता है, भगवान

तेरी जय हो-जय हो गरीब इंसान

पर हम अमीर लोग नही सुधरेंगे

जब तक न गिरेंगे, हम लोग धड़ाम

जिसदिन बनेंगे, हम गरीब इंसान

तब छोड़ पाएंगे, पैसे का मद तमाम

सेठों ने दौलत को, यूं कर रखा बदनाम

जबकि दौलत है, दान-पुण्य का सामान

जो दौलत को समझते, शूल बीच गुलाब

वही लोग बनते है, अमावस में आफताब

जो गरीबों की मेहनत को करते, प्रणाम

ओर दौलत कमाते है, सत्य, ईमान की

वो जमीं से पहुंच से जाते है, आसमान

जो दौलत को मानते, परोपकारी बाण

जो दौलत से बड़ा समझते है, ईमान

उनसे बड़ा नही होता है, कोई नाम

जग करे उन्हें झुक-झुक कर सलाम

जो दौलत से करते है, भले, नेक काम

सच्ची दौलत है, साखी बस, ईमान

जिसके पास वो है, वो सच्चा इंसान

जिसके पास है, दौलत बेईमानी की

उसे समझना तू बस, मुर्दा इंसान



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