सच
सच
ए मर्द तुझसे से मोहब्बत है इतनी सी तेरे अपनों की
स्वार्थ सजी दुनिया में अपनों से उम्मीद की आस ना कर।
जब तक चमकेगी तुम्हारे माथे की शिकन पर मखमली बूँदें पसीने की
तब तक प्रेम के दरिया में अपनेपन के नमक की नमी रहेगी।
बिखेरता रहेगा जब तक अपनी लकीरों में बसी लक्ष्मी की रानाइयां
तब तक लिपटी रहेगी तुमसे अपने आस-पास रची दुनिया की अच्छाईयां।
निवृत्ति की दहलीज़ पर लौटते कदमों की आहट सुनना, कल तक थे जो करीब तेरे अपनों की,
किस काम का अब तू जब रही ना तेरे गुल्लक में अब चमक पैसों के खनखन की।
जब तक दोगे मीठी छाँव शीत पवन पर हक जताते बैठेंगे सब शरण में,
उम्र के आख़री पड़ाव में कौन लेता है खबर बुढ़े बरगद की।