सब्र ऐ बांध ( कविता )
सब्र ऐ बांध ( कविता )
हम अहसासों की शमां जलाए बैठे हैं
तुम आओ तो मुकम्मल जहां होगा।
तेरे आने से ही तो रोशन दिल ए महताब होगा।
हर्फ़-हर्फ़ मिलेंगे तुझ से
फिर बयां, दिले-कांरवां होगा।
सब्र ऐ उम्मीद का बांध
तेरे बाजुओं में टूट कर बिखरने को
तेरी हर आहट पे जवां-रवां होगा।।

