सावन
सावन
सावन हे सावन
मेरी आग ना बुझाए
और और तू लगाएं
सावन आहा सावन
1
जब होता है अंधियारा बादलों की ओर से
मुझको तो डर लगता है जाने कौन जोर से
धक-धक जोर से बोले किसी और से यह मन
सावन आहा सावन
मेरी
2
बिरह की अग्नि में पानी भी जलता है
जलता है कोई जब धुआँ ही निकलता है
इस तपन में इस जलन में जल रहे अंग अंग
सावन आहा सावन
मेरी
3
ठंडी पवन के झोंके भी चुभते हैं नस नस में
अल्हड़ यार जवानी रही नहीं अब बस में
इसको तो मना लूं मन को बहुत संभाल लूं काबू में नहीं है तन
सावन आहा सावन
सावन हे सावन
मेरी आग ना बुझाए और और तू लगाए
सावन सावन सावन