बिच्छू
बिच्छू
बारिश के महीने में बिच्छू लड़ गए रे....
जहर मेरे गोरे बदन में चढ़ गयो रे.......
न जाने यह बेरी कहां से आया है
चिकनी चुपड़ी बातों में आकर मुझे फसाया है
जियो मेरो घबराए मुखड़ो नीलो पड़ गयो रे
बिच्छु.......
बारिश........
जहर......
दिल मेरा बेचैन है आंखें नीली पड़ गई
धक धक धक हो रही धड़कन मेरी यह बढ़ गई
यह बोलो तुझे प्यार करूं यह बंधन कैसो जड़ गए रे
बिच्छू.......
बारिश.…....
जहर......…..
बांध लिया उसने बंधन में बस मेरी बनकर रहना
पागल बनकर सुनती रही उसका था यह कहना
सारी दुनिया को छोड़कर मेरे पीछे पड़ गयो रे
बिच्छू......
बारिश........
जहर....…..
कितनी बीती मुझ पर किसको यार बताऊं
मदहोशी का आलम है क्यों उनको और सताऊं
गोरे बदन को छोड़कर मेरे कालजे में बढ़ गए रे।

