माँ
माँ
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भावनाओं को लेकर संभावनाओं की तलाश में
गांव से शहर की तरफ चला।
बचपन छूटा,बचपन के रिश्ते छूटे
जिस मिट्टी के खिलौने से खेलते थे
वह अभी तक न टूटे।
कल तक जो अपने थे
अब रहते हैं रूठे रूठे।
मिलते थे बाग बगीचे में
खेलते थे आंखे मीचे मीचे
आगे से पहुंचता ही था कि
मां पहुंच जाती थी पीछे पीछे।।
कभी कभी तो वहीं कूटती
पकड़ कर लाती खींचे खींचे
घर पर लाकर और कूटती
आंख के आंसू से हमने कई खेत हैं सींचे।।
