सावन
सावन
शीर्षक - सावन
दुर्मिल सवैया छंद आधारित गीत
112 112 112 112 , 112 112 112 112
बरसे नभ से जल पावन सा , खिलते मन प्रेम सुहावन में ।
महके रज सन्दल बारिश में , अहसास नए जगते मन में ।।
सुख सावन हे अब तो बरसो , तकते नभ नैन निहार रहे ।
धरती निज तृप्ति कि चाह रही , जग सुर्ख़ लगे कि पुकार रहे ।
नित आस लगाय किसान तके , यह सृष्टि निखार लुभावन में ।
महके रज सन्दल बारिश में , अहसास नए जगते मन में ।।
घनघोर घटा नभ गर्जत है, उमड़े बदरा चपला चमके।
पड़ झूलन हैं तरु सावन में, सुखदा जनजीवन है दमके।
चमके चपला अति शोर करे , धरती चित चीर रही तन में ।।
महके रज सन्दल बारिश में , अहसास नए जगते मन में ।।
मिलते शिव सावन पावन में, खिलते मन की खुशियाँ महके।
बरसे बदरा धरती हरिता, बरखा सँग जीवन हैं बहके।
हरिता जग हो सुख सावन का , मिट प्यास धरातल पावन में ।
महके रज सन्दल बारिश में , अहसास नए जगते मन में ।।
#अनामिका_वैश्य_आईना
#लखनऊ

