जब मंजिल मिल जाती है
जब मंजिल मिल जाती है
कई सत्य उजागर होते हैं
चेहरे कई धुँधलाते हैं
तन्हा सा मन हो जाता है
पर दिल को झूठलाते हैं
अपने ही द्वेष ईर्ष्या में
अपनो को ये जलाते हैं
रिश्ते तो रहते है लेकिन
रिश्तों से प्रेम भुलाते हैं
जब मंजिल मिल जाती है
वापस मिलते सब रिश्ते
कल तक जो काला साया
तब बनते हैं सभी फरिश्ते
मतलब के हैं लोग यहां
मतलब के ही सब रिश्ते हैं
मनोभाव कुटिल रखते हैं
झूठी प्रेम की किश्तें हैं
अंजान किया कु-समय में
घायल किये सब सपने
मंजिल मिलते ही बदले
शिखरों पर बनते अपने।