सावन की फुहार
सावन की फुहार


बादलों के रथ पर सवार
चली रे देखो बूँदे हजार
सावन की पहली फुहार
अंग अंग बूँदों की बौछार
धरती संग करत ठिठोली
जैसे आज मिली हो सहेली
सब मिल धरती को धानी चूनर पहनाई
धरती भी देखो नवेली सी शरमाई
पत्ते पत्ते डोली बागन में बाजे शहनाई
सुर के सारे राग छेड़े मन को भरमाई
कभी तालों कभी नदियों को भर आई
पहाड़ों पर नाची घुंघरू सी धुन बाजाई
बूंदें तो आज मनमोहिनी बन आई
लूट के करार मेरा बड़ा ही तड़पा।