साथ से सफलता
साथ से सफलता
मेरी बंद है जुबान,
तभी तो कविता लिखी है,
गुनाह करने के बाद,
सज़ा से बचने की उम्मीद सी दिखी है।
सोचा दिल का हाल,
लिख कर दूं बयां,
कोई पढ़ लेगा तो,
किस्मत हो जायेगी रवां।
बुराई से लड़ने का,
रास्ता होता है कभी बुरा,
समझने, समझाने से निकलता
है कभी हल अधूरा।
हुआ करे अपराध बोध
दुख जाएँ कई दिल,
नश्तर चलाना होता है बेहतर,
अगर मिलती हो मंजिल।
हाँ सच है कि इस मंजिल की
परिभाषा हमने गढ़ी है,
मुश्किल है तुमको तो,
हमको भी नहीं आसान ये घड़ी है।
माफ़ कीजीयेगा, किस्मत की,
ये लकीरें हमने नहीं खीचीं हैं,
तूफ़ान तो उठ चुके थे तभी,
जबसे आपने हमारी तरफ से आँखें मीचीं हैं|
उम्मीद का दामन,
छोड़ता नहीं जो सच्चा माझी,
नावें तो उसी की,
साहिल से मिलकर हों राज़ी|
मिलकर नाव खेते तो अच्छा था,
अब तो बस उम्मीद का साथ बचा है,
अकेलेपन की तोहमत हमपे न लगाना,
साथ निभाने को हमारी अब भी रजा है|
साथ ही वो चीज़ है,
जो रस्ता भी है मंजिल भी
सफलता दिल को तभी देती सुकून
जब कोई हो उसमें शामिल भी।