साल ये कैसा आया था
साल ये कैसा आया था
इस बार पुनः वह आई थी
धर रूप अलग एक बीमारी
अनभिज्ञ थे जन, आशंका से
होगी प्रचंड महामारी
कोई घर-बार न छूटा था
जिस पर न दुखों का वार हुआ
कोई न कोई एक नाता
आघात हुआ, लाचार हुआ
बन सकी न उनकी सहयोगी
थी कैसी मेरी लाचारी
ग्लानि, अनुताप, ताप, व्याकुलता
चिंता में मैं बेचारी
मानव अस्तित्व पड़ा खतरे में,
साल ये कैसा आया था ?
हर ओर था हाहाकार मचा
आभास ये कैसा लाया था?
आशा के दीप जलाए थे
सबने अपने अंतरतम में
होगी समाप्त ये रात घनी
था विश्वास हरेक मन में
हमने खोया कुछ अपनों को
देखा टूटे कुछ सपनों को
साया संकट का छाया था,
साल ये कैसा आया था।
साल ये कैसा आया था।