साइकिल वाला डाकिया
साइकिल वाला डाकिया
पहले हर घर में होता उसका इंतज़ार था
किसी का बधाई सन्देश लेकर आता
कभी किसी को नौकरी की वो था ख़बर सुनाता
किसी का पत्र उसके पास समुन्दर पार से था आता
कभी किसी को नव - वर्ष की शुभकामनायें था पहुँचाता
वो तो साइकिल वाला डाकिया इंसान बड़ा जोरदार था
अपने काम को लेकर वो तो ख़बरदार था
उसे देख सब कहते लो जी ख़बरीलाल आ गया
साइकिल पर झोला भर चिट्ठियों का वो ले आ गया
अपने उस पिटारे से ना जाने क्या - क्या ख़बर बाहर वो निकालेगा
किसी फौजी की चिट्ठी होगी तो कौन उसकी विवाहिता के दिल को संभालेगा
कभी कोई उसके गम है बाँट पाया ना गाकर उसने अपना हाल किसी को सुनाया
कोई चिट्ठी डाकिया ऐसी बाँटें पढ़ उसको हम फूले नहीं समाते
किसी चिट्ठी में वो प्रेम के भेद खोले किसी में दुःख के बरसाता शोले
जैसे - जैसे समय बीतता गया जाने कहां साइकिल वाला डाकिया गया
अब बड़ा हैरान हूँ कि जमाना कितना बदल गया
ना कोई चिट्ठियों का दस्तूर बचा कैसा समय ये आ गया
सब सबका आधुनिकता की दौड़ में कहीं पिछड़ गया
आजकल तो हवा में सन्देश आने जाने लगे
पलक झपकते ही एक जगह से दूसरी जगह वो मिल जाते
अब तो लगने लगी डाकिये तेरी भी पुरानी बातें तेरी ऐसी कोई जरूरत ना बची
ऐसा लगता है ना आयेगी फिर वो घड़ी कि साइकिल वाला डाकिया आयेगा
दूर देश की खबर कहीं से लायेगा
अब तुम लोगों का कोई ऐसा काम ना बचा
खोलना खाते बैंकों की तरह लेना अपनी नौकरी बचा।