रूठी चाँदनी
रूठी चाँदनी
आज चाँद को दिन के तीसरे पहर में देखा।
साँझ के सूरज की लालिमा में झूमते देखा।
शायद कुछ खो गया था। जिसको वो ढूंढ़ रहा था।
मदहोश हुआ। थोड़ा अधूरा।
सूरज ढला, चाँद जला।
जिसको ढूंढ़ रहा था वो मिला।
क्या था वो??
जिसके बिना चाँद है अधूरा !
(चांदनी)
जो सूरज की किरणों के साथ कहीं मिल रही थी।
आपस में दोनों सखी खेल रही थी।
अब वक़्त था किरणों के जाने का।
एक सखी का दूसरी सखी से जुदा होने का।
चाँदनी हो गयी उदास, नहीं गयी चाँद के पास।
चाँद चाँदनी के बिना अधूरा, तभी आज आसमान हैं सूना।