रक्तबीज का संहार
रक्तबीज का संहार


माँ दुर्गा आप हैं सशक्त आत्मविश्वास से पूरित
सहस्त्रों गुणों को आत्मसात करती अति शक्तिशाली
नित नवीन रूपों से भक्तों को दरस दिखाती हो
आप हैं अति ऊर्जावान शक्तियों से पूरित मतवाली
पार्वती ,उमा , अंबा ,भवानी , चामुंडा महादेवी
चन्द्रघन्टा , दुर्गा या हो कालरात्रि, किशोरी ,काली ।
रक्तबीज ने जब हाहाकार थी मचाई ...
समस्त देवों ने
मुंह की खाई...
सारी देव सेना भी न उसे हरा न पाई !!
जो कोई भी रक्तबीज को मारे ..
लाल रक्त के जमीं पर
गिरते ही दैत्य जन्म लेते कई सारे ....
मार काट मचाते ..हिंसा का मानो हो रहा था तांडव
पर ऐसे में क्या करे सुर और दानव !!
तब माँ दुर्गा को सबने आवाज़ लगाई !
माँ ने धरा फ़िर काली रूप ..
बदला अपना सारा स्वरूप ...
रक्तबीज के वि
ध्वंस के लिए ..
माँ ने रक्तबीज का किया संहार ..
पीने लग गई रक्त की बूँद ताकि न जन्म ले कोई भी
असुर .....
चला गया अति पापी रक्तबीज फिर मृत्युलोक की ओर
और समस्त देवताओं ने माँ दुर्गा के अति क्रोध को रोकने
को महादेव शंकर जी को गुहार लगाई ..
क्रोधित नयन थे फड़क रहे ...जिह्वा पर लालिमा युक्त
रक्त की थी धार ...
शक्तिमती को शान्त करें कैसे ये महादेव न समझ पाए
फ़िर एकाएक शक्ति के पैरों के नीचे ही लेट गए महाकाल
प्रलय मानो आज रथ पर चढ़ कर मचा रहा था .. हुंकार
अगर न आज शक्ति को रोका तो...
सम्पूर्ण सृष्टि में छाएगा हाहाकार !!
जब देखा माँ भवानी ने कि साक्षात शिव उनके चरण के
नीचे हैं ..तब माँ भवानी ने अपने क्रोध शान्त किया और
समस्त सृष्टि को मानो जीवन का वरदान दिया !!