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Anita Sharma

Abstract Fantasy Others

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Anita Sharma

Abstract Fantasy Others

रिश्तों का भँवरजाल

रिश्तों का भँवरजाल

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आरंभ मध्य अंत की

सीढ़ी पर चढ़ते-उतरते रिश्ते,

मैंने देखा है हर भाव रिश्तों में

हँसते, कुढ़ते, रोते, बिखरते,

कहने को एक डोर से

जन्मों तक बँधे रिश्ते,

ज़रा सी तल्खी और

भंवर में फँसते ये रिश्ते,

समर्पण संवेदनाओं में

गतिमान हुए रिश्ते,

एक पहिया क्या सरका

लड़खड़ाते हुए रिश्ते,

कुछ अभिमान की आड़ में

दरकते...स्वार्थ भरे रिश्ते,

मुख मिठास घोलकर

पीठ पर छुरा घोंपते रिश्ते,

कभी उम्मीदों में पनपते

एक आस पर मुस्काते रिश्ते,

विश्वास टूटते ही

बेजान मौन पड़े रिश्ते,

वक़्त और ज़रूरत के

हिसाब से बदलते रिश्ते,

दम तोड़ते किसी कोने में

सच्चाई में घुले रिश्ते,

जीवन बहुत छोटा है

गर रिश्तों में बेबसी है,

बेशर्त निभते रिश्तों में

बस मिलती गर्मजोशी है,

जीवन लगता कठिन है

कितने उपमाओं में बँटते रिश्ते,

कहाँ आरम्भ से अंत तक

रिश्तों में सच्चा प्यार दिखता है,

लगता ही नहीं कि रिश्तों का

एहसासों से कोई रिश्ता है,

ज़िन्दगी खुशहाल जीनी है,

तो खुश हो कर निभाओ रिश्ते,

क्यूंकि बड़े संवेदनशीलता से

निभाए जाते हैं ये रिश्ते,

ना स्वार्थ का हो व्यापार

प्यार कमा लेते हैं खूब रिश्ते,

जैसी उपजे खुद की समझ

वैसे ही ढल जाते हैं रिश्ते..



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