रिश्ते-नाते
रिश्ते-नाते
जीवन सफर एक कठिन डगर, ना मखमल की कभी सेज सुनो
हर रिश्ते की अपनी गरिमा, अनुभव से ये बात गुनो।।
चार दीवार तक हर एक रिश्ता, शमशान को समाज का अंत सुनो
पुत्र का संबंध अग्निदान तक, बहू/पुत्री को सम्मान चुनो।।
मात-पिता ईश्वर रूप है, गुरु से जीवन ज्ञान पढ़ो
मित्र का होता आत्म संबंध तो, शत्रुता से क्रोध की खान बनो।।
भाई से बड़ा ना कोई हितैषी, ना, अर्धांगिनी सा मित्र सुनो
परोपकार का भाव चाचा तो, ताऊ के जैसा ना इंसान मिलो।।
बुआ/बहन तो माता दूसरी, ध्यान से फूफा/बहनोई की बात सुनो
सास, ससुर के दूसरे बेटे, निभाने, फर्ज़ के लिए तैयार करो।।
भांजे/भतीजे बच्चे जैसे, उनसे पुत्र/पुत्री सा व्यवहार करो
भेद करो ना जरा भी मन में, वो पुत्र/पुत्री से बढ़कर हो।।
पोता/पोती कुल का मूल है, उनके मन में संस्कार भरो
कुल का गौरव उनसे बढ़ेगा, अच्छी बातें उनसे करो।।
मामा/मौसा तो दूर का रिश्ता, इनके जैसा ना देनदार सुनो
वक़्त पर जाने कौन खड़ा हो, हर रिश्ते को अहमियत दो।।
शुद्ध कर्म सा सगा कोई ना, सदा प्रेम भाव का मार्ग चुनो
निराशा मन में आए कभी ना, ना प्रभु का भजन तजो।।
