रहस्यमयी वह स्त्री
रहस्यमयी वह स्त्री
चेहरे पर रहस्यभरी मुस्कान सदा,
अत्यंत सुन्दर, आकर्षित, गरिमामय,
रहती एकदम अकेली बड़े से बंगले में,
निश्चित समय पर जाती और आती
रहस्यमयी वह स्त्री।
स्वंम करती देखरेख बग़ीचे की,
जो रहता भरा सदैव सुगंधित पुष्पों से,
स्वयं भी रहती वह सजी-धजी सुगंध बिखेरती,
देख उसे होता आश्चर्य, आख़िर है कौन
रहस्यमयी वह स्त्री।
चली जा रही थी वो जगंल की ओर,
दबा न पाई जिज्ञासा मैं, छुप कर चल दी पीछे-पीछै,
भयभीत हो किया निश्चय लौटने का मैनें,
देखा अनोखा दृश्य तभी, जा बैठी एक टीले पर
रहस्यमयी वह स्त्री।
निश्चय न कर पा रही थी मैं रूकने का,
तभी देखा उतार फैंकी साड़ी उसने,
पहनी हुई थी पैंट नीचे,
आई आवाज़ सिसकियों की, रो रही थी
रहस्यमयी वह स्त्री।
रूक न सकी मैं और वहाँ, भागी सरपट,
घबराई, डरी, उखड़ी सांसें के साथ पहुँची घर,
भाग खड़ी हुई निंद्रा भी रूठ कर,
सोचती रही रात सारी आख़िर है कौन
रहस्यमयी वह स्त्री।
दृढ़ निश्चय कर चल दी मैं घर उसके,
हुई आश्चर्यचकित देख खुला दरवाज़ा,
देख़ा अन्दर पुरूष के कपड़ों में लथपथ ख़ून से,
पड़ी थी पंलग पर गिनती आख़री साँसें
रहस्यमयी वह स्त्री।
दिया थमा नोट उसने अपनी आत्महत्या का,
ईश्वर ने पुरूष को दे दिया था शरीर एक स्त्री का,
हो गया था प्यार अटूट उसे एक स्त्री से,
मार कर धक्के गई थी निकाल घर से
रहस्यमयी (ट्रांसजे़डर) वह स्त्री।