रदीफों काफिया
रदीफों काफिया
एक इम्तिहान में हार से कुछ ऐसा नाराज़ हुआ
कि जीवन में एक नए राह का आगाज़ हुआ।
किसी को बना लिया हमनें इतना अपना कि
हर एक सांस उसके सांस का मोहताज हुआ।
एक रोज आयी थी छत पर चाँद को देखने
अरे! उसे देखकर तो महताब भी बेताज हुआ।
टूटे फूटे शब्दों से आज फिर कुछ लिख गया
लगता है मैं आज फिर खुद से नाराज़ हुआ।
प्यार बिछड़न तरपन ये सब तो कब का हुआ
तो ऐसा क्यों लगता है जैसे ये सब आज हुआ ?