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Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy

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Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy

राज़

राज़

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हर राज़ दिल का यूँ ही बताया नही जाता

और खुल जाए जो राज़, राज़ माना नही जाता


न्हाई के पर्दों में दास्तानें कई दफन रहती है

दर्द बयां नही हो पाता, सांसे सिसकती रहती है


ज़ुबान खामोश  रहती हैँ खामोशी की गिरह में

फड़फड़ाती है रूह दिल-ओ-दिमाग की जिरह में


है यह सवाल, कब तक राज़ छुपाकर जियें हम

रिवाज बदलें कैसे, कब तक यूँ आँसू पिये हम


राज़-ए-उल्फत सीने में दबा के जाम पीते थे

दुनिया-ए-बाज़ार में अब, अदब कहाँ रहा मयखाने में.



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