राज़ रहती बातें
राज़ रहती बातें
कुछ बातें मन की होती है !
मन में रहने की ही होती है !
कभी मेरे मन की बात तेरे मन मे नही रहती है
और ना ही तेरे मन की बात मेरे मन मे रहती है
इतिहास और भूगोल को जानते हुए
मन की बात अपनी हद में ही रहती है
औरों की बात को अनसुना कर
मन की बात सिर्फ अपनी सुनती रहती है
और हर वक़्त कॉम्प्रोमाईज़ करते हुए शायद गुनाह करती है.....
मन की बात क्यों गहरे अंदर तक
दबी रह जाती है ?
क्या मन की बातें कमज़ोर होती है ?
नहीं !
मन की बात सालों साल
अंदर ही इंतज़ार करती रहती है
और विपरीत स्थिति में भी
कतई कमज़ोर नही पड़ती है....
हाँ ! वह आदत बन कर जिंदगी से
मोहब्बत करती जाती है
जिंदगी में एडजस्टमेंट करते हुए
मन की बात मन मे ही रह जाती है.....