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Kavita Sharma

Abstract

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Kavita Sharma

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प्रकृति

प्रकृति

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सदियों से देते रहे-ऐ मानव तुझे सांसों की लडी

पर तूने हमारी जरा सुध न ली

फल फूल तोड़-तोड तूने खूब खाए


ऊंचे दामों में बेच बेच ख़ूब पैसे कमाये

लालच और स्वार्थ ने तुझे अंधा बनाया

जंगलों का तूने किया सफाया


हजारों प्राणियों को बेघर कर दिया

मनुष्यता का तूने स्तर गिरा दिया

प्रकृति से जुड़ी है तेरी जिंदगी

तुझे अपनी गलती होगी सुधारनी


पुनः प्रकृति की ओर लौटना होगा

साथ इसे अपने जीवन में शामिल करना होगा।


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