निराशा
निराशा
आँखों के अश्क़ भी सूख जाते हैं
दर्द अपना हम किसीसे कह नहीं पातें हैं।
दिल में छुपे ज़ख़्म भी नासूर बन जाते हैं
निराशा के कॉटे इंसान को
अंदर ही अंदर से छलनी कर जाते हैं।
आँखों के अश्क़ भी सूख जाते हैं
दर्द अपना हम किसीसे कह नहीं पातें हैं।
दिल में छुपे ज़ख़्म भी नासूर बन जाते हैं
निराशा के कॉटे इंसान को
अंदर ही अंदर से छलनी कर जाते हैं।