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Chandra prabha Kumar

Abstract

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Chandra prabha Kumar

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चॉंद पर मानव के क़दम

चॉंद पर मानव के क़दम

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  चॉंद पर मानव का एक नन्हा क़दम ,

  मानवता के लिये एक लम्बी छलॉंग,

  इस बीस जुलाई को हुए बावन वर्ष 

  जब चॉंद पर रखा था पहला क़दम ।


  और दिन रविवार को चॉंद पर उतरा था,

  अपोलो-११ यान से नील आर्मस्ट्रॉंग,

  जो बना पहला मानव चॉंद छूने का,

 दूसरा साथी था साथ में बज़ आलड्रिन। 


  मानव ने स्वर्णिम इतिहास रच दिया,

  बरसों की कल्पना को साकार कर दिया,

  अन्तरिक्ष में चन्द्रलोक की सैर कर आया,

  चॉंद का सब आकर्षण रहस्य ले आया। 


   मानव विधाता की श्रेष्ठ कृति,

   अनंत ज्ञान अनंत मेधा व्रती,

   अनंत संभावना युक्त शक्तिपुंज धनी,

   कर्म विचारणा का उच्चतम यति। 


  ज़रूरत है मानव क्षमता को पहचानें,

  अमूल्य समय की महिमा को पहचानें

  मानवेतर पशु पक्षी में ज्ञान विचार नहीं ,

  भोग योनि है नया कर्म कर सकते नहीं। 


   पर मानव की यह कर्मभूमि है

   देव भी मानव जन्म को तरसते है।

   मानव जो चाहे पा सकता है

   जहाँ तक चाहे जा सकता है। 


    कल्पना में जो चॉंद था

    'चंदा मामा दूर के,

     पुए पकाएँ बूर के'

    जो बच्चों को बहलाते थे,

    चंद्रमुखी की उपमा बन जाते थे,

    मानव वहाँ तक पहुँच गया,

    अंतरिक्ष में उड़ चला,

    चाँद की धरती पर पहुँच गया। 


    नए युग की शुरुआत कर दी,

    चाँद का रहस्य खोल दिया।

    पर यह क्या वहाँ पर पाया!

    कुछ भी मनोरम नहीं था!


    ऊबड़ ख़ाबड़ सतह थी वहॉं पर,

    ज्वालामुखी विवर और जमा लावा था,

   कुछ भाग अँधेरा कुछ भाग उजाला था,

    शून्य सब ओर व्यापक विराजमान था। 

    चंद्रमा का रहस्य मानव जान गया। 

    जगह जनशून्य थी यह पहिचान गया।


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