रावण-दहन
रावण-दहन
विजयादशमी का पर्व मनाने
हर ओर खुशी का आलम है
रावण के पुतले को जलाने
जुट गई जनता जनार्दन है।
सीता का अपहरण किया
दंड का वह अधिकारी था
प्रकांड पंडित शास्त्र का ज्ञाता
किन्तु वह अहंकारी था!
वाटिका में सीता को रखा
बल का था न प्रयोग किया
सीता स्वयं उसका वरण करे
इंतज़ार उसने हर रोज़ किया।
आज हमारे चारों ओर
रावण असंख्य घूम रहे
एक नहीं दसियों सीता का
मान लूट कर झूम रहे।
इन रावण को दंड दिलाने
राम न हम बन पाते हैं
दशहरे पर जब पुतले जलते
ये रावण ठहाके लगाते हैं!
कानून हमारा इन रावण के
आगे शीष झुकाता है
सरकार की नाकामी से
कद इनका बढ़ता जाता है।
समाज के इन रावण के आगे
सब क्यों बेबस लाचार हैं
राम पुन: धरती पर प्रकट हो
शायद करते यही गुहार है।
विजयादशमी के पर्व का उत्सव
सार्थक तब हो पाएगा
जब मानव मन के भीतर के
रावण को मार गिराएगा।