रात
रात
रश्मि सज-धज कर देखो
चली है मिलने प्रियतम से।
तन पर सुगन्धित इत्र छिड़का
पोता चेहरे पर गाढ़ा द्रव
तारों रूपी चुनरी ओढ़ी
निकल पड़ी गोधूली में,
रश्मि सज-धज कर देखो
चली है मिलने प्रियतम से।
पगों में मखमली जूतियां
कानों में लटकाई बालियां
छम-छम करती चली है ये
चांद प्रेमी के आंगन में,
रश्मि सज-धज कर देखो
चली है मिलने प्रियतम से।
प्रियतम भी आतुर है,
लगाये टकटकी देख रहा है
भरने को आतुर है इसको
आज तो जैसे बाहों में,
रश्मि सज-धज कर देखो
चली है मिलने प्रियतम से।